प्यारे भक्तों, जब हम ऋग्वेद के पवित्र श्लोकों का अध्ययन करते हैं, तो हमें हर पंक्ति में प्रकृति की गहरी महिमा दिखाई देती है। ऋग्वेद में वृक्षों और प्रकृति को ईश्वर का ही रूप माना गया है। हम जिन वृक्षों को देख रहे हैं, वे केवल लकड़ी के तने और पत्ते नहीं हैं; ये तो हमारे जीवन के आधार हैं, हमारे परमात्मा की शक्ति का साकार रूप हैं।
ऋग्वेद कहता है, त्वं वृक्षस्य रोहणमसि विष्णोः प्रतिष्ठा। इसका अर्थ है, हे वृक्ष, तुम विष्णु का आधार हो। सोचिए, हमारे श्रीहरि विष्णु, जिनकी हम पूजा करते हैं, उनका निवास वृक्षों में है!
देखो, वृक्ष हमें छाया देते हैं, फल और फूल देते हैं, और यहां तक कि हमारे प्राणवायु का स्रोत भी वृक्ष ही हैं। सूर्य की शक्ति इन वृक्षों में आती है, और ये हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्रदान करते हैं। ऋग्वेद हमें कहता है कि सूर्य केवल आकाश में चमकने वाला प्रकाश नहीं है; वह हमारे जीवन की प्रेरणा है, जो हर प्राणी को जीवन का प्रकाश देता है। आ सूर्यायतयामि चक्षुश्चर्तुर्मासं हरी – हे सूर्य, तुम मेरे चक्षु हो, यानी तुम्हारी ही दृष्टि से हम सब देख पाते हैं, जीवन पाते हैं।
भक्तों, जब हम वृक्षों की पूजा करते हैं, तो हम केवल उनके तनों, पत्तों या फूलों को नहीं पूजते, हम उस शक्ति को प्रणाम करते हैं, जो हमारे जीवन का आधार है। वृक्ष केवल धरती पर उगे कुछ पौधे नहीं हैं; वे हमारे देवताओं का निवास हैं। ऋग्वेद में यह भी कहा गया है, वनस्पतये नमो भवाय च नमः – वनस्पतियों को प्रणाम, वे हमारे कल्याण के लिए हैं।
हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें सिखाया कि वृक्षों की रक्षा करना हमारा धार्मिक कर्तव्य है। आज के इस समय में, जब पेड़ों की कटाई बढ़ गई है, जब जंगल घटते जा रहे हैं, हमें इस प्राचीन ज्ञान की ओर लौटने की ज़रूरत है।
मेरा निवेदन है, प्रेम से इन वृक्षों की सेवा करें। अपने जीवन में कम से कम एक वृक्ष लगाएं। जब आप वृक्ष लगाते हैं, तो आप केवल एक पौधा नहीं, एक जीवन का स्रोत उत्पन्न करते हैं। पृथिव्यै नमः – पृथ्वी को प्रणाम, यह मंत्र हमें यह शिक्षा देता है कि धरती हमारी माता है।
तो आओ, वृक्षों की सेवा करें, धरती माँ की रक्षा करें, और इस अनमोल प्रकृति का सम्मान करें। यही हमारा कर्तव्य है, यही धर्म है।