प्यारे भक्तों, आज हम एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं—धरती के प्रति हमारी जिम्मेदारी। यह धरती, यह प्रकृति, केवल हमारी नहीं है; यह हमें ईश्वर ने दी है। इसे हमें सहेज कर रखना है, इसकी रक्षा करनी है। हम इस धरती के रक्षक हैं, और हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम इसे सुरक्षित और हरा-भरा बनाए रखें।
ऋग्वेद के इस मंत्र के माध्यम से हमें अपनी जिम्मेदारी का आह्वान किया गया है। हमें यह याद रखना चाहिए कि जो कुछ भी हम लेते हैं, वह हमें इस धरती ने दिया है। इसलिए, हमें इसे संजो कर रखना होगा, आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे हरा-भरा और समृद्ध बनाना होगा।
तो आइए, आज हम यह संकल्प लें कि हम अपने जीवन में कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाएंगे और उसकी सेवा करेंगे। यह वृक्ष हमारे लिए केवल एक पौधा नहीं, बल्कि हमारे आध्यात्मिक योगदान का प्रतीक होगा। जैसे एक वृक्ष अपने पत्तों के माध्यम से हमें ऑक्सीजन देता है, वैसे ही हमारा यह कार्य हमें जीवन की सार्थकता का अहसास कराएगा। यही हमारी सच्ची सेवा होगी, यही हमारा धर्म होगा।
भक्तों, जब हम एक वृक्ष लगाते हैं, तब हम न केवल अपने लिए, बल्कि समाज और धरती के लिए भी एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे होते हैं। यह वृक्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए छाया, फल और औषधि का स्रोत बनेगा। हम इसे अपने बच्चों की तरह सहेजेंगे और इसकी रक्षा करेंगे।
तो, आइए हम वृक्षों को प्रणाम करें, धरती को प्रणाम करें, और इस जीवन के संतुलन को प्रणाम करें। यही हमारा जीवन का उद्देश्य है, यही हमारी सच्ची पूजा है। हम सब मिलकर इस धरती का सम्मान करेंगे, और इसे संजीवनी प्रदान करने का संकल्प लेंगे। यही हमारी सच्ची धर्मनिष्ठा है, यही हमारी सच्ची सेवा है।