प्रिय भक्तों, हमारे ऋषि-मुनियों ने सदियों पहले ही समझ लिया था कि प्रकृति का संतुलन बनाए रखना ही हमारा सच्चा धर्म है। जब हम एक वृक्ष के नीचे बैठते हैं, उसकी छाया में विश्राम करते हैं, उसकी शीतल हवा का आनंद लेते हैं, तो वह वृक्ष हमें प्रेम और सेवा का संदेश दे रहा होता है। वृक्ष का हर पत्ता, हर शाखा, और उसका हर फल केवल देना जानता है, बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी शर्त के।
देखो, यदि हम एक वृक्ष काटते हैं, तो हम केवल उसकी लकड़ी नहीं लेते; हम उसकी छाया, उसकी शांति, और उसके द्वारा किए गए त्याग को भी समाप्त कर देते हैं। यदि हम इस धरती से एक वृक्ष हटा देते हैं, तो समझो, हमने जीवन का एक आधार खो दिया है। वृक्षों की सेवा बिना शब्दों के होती है। वे अपने फल, छाया, और हवा से हमें जीवन देते हैं, और इसके बदले हमसे कुछ भी नहीं मांगते।
हमारे ऋषि कहते थे कि यह संसार एक परिवार है – वसुधैव कुटुंबकम्। इस परिवार में हर जीव, हर वृक्ष, और हर तत्व का अपना विशेष स्थान है। जब हम इस संतुलन को बिगाड़ते हैं, तो हम केवल वृक्ष को ही नहीं, बल्कि खुद को भी हानि पहुंचाते हैं। जैसे यदि शरीर का कोई अंग काट दिया जाए तो शरीर पूरा नहीं रहता, वैसे ही यदि हम वृक्षों को, जल को, या जीवों को नष्ट करते हैं, तो यह सृष्टि भी अधूरी हो जाती है।
भक्तों, सोचो, वृक्ष की भूमिका क्या है। वह केवल हमारे लिए फल और छाया नहीं, बल्कि हमारी सांसे भी प्रदान करता है। वृक्षों के बिना हमारी यह पृथ्वी उजाड़ हो जाएगी, श्वासें रुक जाएंगी। वृक्ष की जड़ें उस मिट्टी को थामे रहती हैं, ताकि यह पृथ्वी स्थिर रहे। वृक्ष का एक-एक अंग इस पृथ्वी को सुरक्षित रखता है, और हमसे यही अपेक्षा करता है कि हम उसका संरक्षण करें।
तो आओ, यह संकल्प लें कि हम इस प्रकृति का संतुलन बनाए रखेंगे, अपने कर्मों से इस धरा को हरा-भरा बनाएंगे। हर कटे वृक्ष के बदले एक नया वृक्ष लगाएंगे, ताकि यह संसार, यह सृष्टि हमारे बच्चों के लिए भी उतनी ही सुंदर और पूर्ण बनी रहे। यही हमारा सच्चा कर्तव्य है, और यही हमारे ऋषियों का सन्देश है।