प्रकृति संरक्षण: जीवन का आधार और धर्म का मूल

प्रिय भक्तों, यह प्रकृति जो हमें चारों ओर दिखाई देती है, वह केवल पेड़-पौधों का समूह नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन का आधार, हमारे धर्म का मूल है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जैसे वृक्ष अपनी शाखाओं को हर दिशा में फैलाकर हर जीव को छाया, फल, और शरण प्रदान करता है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में प्रेम, दया, और करुणा को सबके प्रति फैलाना चाहिए। 

वृक्ष अपने विविध अंगों से हमें सिखाता है कि हर शाखा, हर पत्ता, और हर फूल का एक अलग सौंदर्य और महत्व है, फिर भी वह पूरे वृक्ष का ही हिस्सा है। इसी प्रकार यह संसार भी विविधताओं से भरा हुआ है। हर जीव, हर वनस्पति, हर तत्व में ईश्वर का वास है। कोई पौधा फूलों से सुसज्जित है, कोई औषधि प्रदान करता है, और कोई अपनी छाया से हमें शांति देता है। 

देखो, हमारे ऋषियों ने कितनी सुंदरता से इस सृष्टि की विविधता का आदर करना सिखाया है। वसुधैव कुटुम्बकम् का अर्थ है कि यह धरती हमारा एक विशाल परिवार है, जिसमें हर जीव की अपनी भूमिका है, हर वनस्पति का अपना महत्व है। जब हम इस विविधता का सम्मान करते हैं, तब ही हम सच्चे अर्थों में ईश्वर के करीब होते हैं।

तो आओ, यह संकल्प लें कि हम इस सृष्टि का आदर करेंगे, इस विविधता का सम्मान करेंगे, और इसे सुरक्षित रखने के लिए अपने प्रयास करेंगे। यह विविधता हमें सिखाती है कि हर रंग, हर रूप, हर गुण हमारे जीवन को पूर्ण बनाता है। हमें इसे संजोना है, इसका संरक्षण करना है, और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे सुरक्षित रखना है। 

प्रकृति के इन विविध रूपों को नमन, सृष्टि के इस अद्भुत संतुलन को प्रणाम। यही हमारा सच्चा धर्म है, यही हमारी सच्ची पूजा है। जब हम इस सृष्टि को अपनाते हैं, जब हम इसका सम्मान करते हैं, तब हम सच्चे अर्थों में ईश्वर की आराधना कर रहे होते हैं। यही हमारे जीवन का परम उद्देश्य है, यही हमारे धर्म का आधार है।

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