प्यारे भक्तों, इस जीवन में हमें बहुत कुछ प्राप्त होता है, परंतु हमें यह भी समझना होगा कि जो कुछ हमें मिलता है, वह केवल हमारे उपयोग के लिए नहीं है। इस प्रकृति का हर उपहार हमें सँभालने, सहेजने और अगली पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखने के लिए मिला है। वृक्षों का रोपण, वृक्षों की देखभाल, और उनकी रक्षा करना केवल एक पर्यावरणीय कार्य नहीं, बल्कि एक धार्मिक कर्तव्य है।
ऋग्वेद हमें यह शिक्षा देता है कि वृक्षारोपण केवल धरती की सेवा नहीं है; यह अपने धर्म का पालन है। इस मंत्र, पृथिव्यै नमः का अर्थ है, पृथ्वी को प्रणाम। पृथ्वी को प्रणाम करते हुए, हम यह स्वीकार करते हैं कि इस धरती का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है। वृक्षारोपण का यह कार्य हमें धरती माता के प्रति सम्मान और उनकी सेवा का अवसर प्रदान करता है।
वृक्षारोपण का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
जब हम एक बीज बोते हैं और उसे वृक्ष बनने तक सहेजते हैं, तो यह हमारे जीवन का प्रतीक है। जिस प्रकार बीज से एक विशाल वृक्ष बनता है, वैसे ही हमारा जीवन भी छोटे-छोटे कर्मों से बढ़कर एक विशाल उद्देश्य प्राप्त करता है। वृक्षारोपण के इस कार्य से न केवल हमें शारीरिक संतुष्टि मिलती है, बल्कि यह हमारे मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है। यह हमें धैर्य, सेवा, और विनम्रता का पाठ पढ़ाता है।
प्राचीन ऋषियों ने वृक्षों को ईश्वर का रूप माना है, और हर वृक्ष में देवता का निवास बताया है। वृक्ष न केवल हमें छाया और फल देते हैं, बल्कि हमारे वातावरण को शुद्ध करते हैं, और इस धरती को जीवन से भरपूर बनाए रखते हैं। वृक्षारोपण से हम न केवल पर्यावरण को संतुलित करते हैं, बल्कि अपने जीवन को भी संतुलन में रखते हैं।
वृक्षारोपण—समाज और भविष्य के प्रति हमारा कर्तव्य
भक्तों, वृक्षारोपण केवल आज की पीढ़ी के लिए नहीं है। यह हमारे बच्चों, हमारे समाज और पूरे विश्व के कल्याण के लिए है। यदि हम आज एक वृक्ष लगाते हैं, तो वह आने वाले सैकड़ों वर्षों तक अपनी छाया और फल देगा। यह वृक्ष हमारे समाज को संजीवनी देगा और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इसका लाभ उठाएंगी। यही कारण है कि ऋग्वेद में वृक्षों का रोपण एक धार्मिक कर्तव्य बताया गया है, जो समाज की भलाई और मानवता की उन्नति में सहायक है।
धरती के प्रति हमारी जिम्मेदारी
प्यारे भक्तों, वृक्षारोपण का यह कार्य हमें यह याद दिलाता है कि यह धरती केवल हमारी नहीं है। यह हमें ईश्वर ने दी है, और इसे हमें संभाल कर रखना है। हम इस धरती के रक्षक हैं। इस मंत्र के माध्यम से ऋग्वेद हमें अपनी जिम्मेदारी का आह्वान करता है कि हम अपनी धरती को सुरक्षित रखें, उसे हरा-भरा बनाएँ, और आने वाली पीढ़ियों के लिए उसे संजो कर रखें।
तो आइए, आज यह संकल्प लें कि हम अपने जीवन में कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाएंगे और उसकी सेवा करेंगे। यह वृक्ष हमारे लिए केवल एक पौधा नहीं, बल्कि हमारा आध्यात्मिक योगदान होगा। यही हमारी सच्ची सेवा होगी, यही हमारा धर्म होगा।
वृक्षों को प्रणाम, धरती को प्रणाम, और इस जीवन के संतुलन को प्रणाम। यही हमारा जीवन का उद्देश्य है, यही हमारी सच्ची पूजा है।