यज्ञ करने की विधि

आवाहन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 अनंत श्री विभूषित अवधूत बाबा अरुण गिरी जी महाराज । एनवायरमेंट बाबा ।

  परमात्मा और प्रकृति का संबंध

परमात्मा की दैवीय शक्तियां सृष्टि के संतुलन और संचालन में सदा सक्रिय रहती हैं, और इसका माध्यम बनती है प्रकृति। वैदिक काल से ही हम लोकमंगल और कल्याण के लिए यज्ञ करते आए हैं। यज्ञ के माध्यम से देवताओं का आवाहन किया जाता है और प्रकृति की शक्तियों की स्तुति गाई जाती है।  

यज्ञ पूजन विधि  

  1. कलश स्थापना  

यज्ञ की शुरुआतकलश स्थापना से होती है। कलश ब्रह्मांड का प्रतीक है, क्योंकि इसमें धारण करने की क्षमता होती है।  

  • कलश में जल: संपूर्ण ब्रह्मांड को केंद्र में रखकर इसका पूजन किया जाता है।  
  • कामना: कलश में प्रतिष्ठित देवताओं का कार्यक्षेत्र विस्तृत हो और उनकी कृपा दृष्टि बनी रहे।  
  1. शंखनाद  

यज्ञ का आवश्यक अंगशंखनाद है। पूजन से पहले शंख बजाकर दिव्य ध्वनि उत्पन्न की जाती है, जो पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।  

  1. तिलक  
  • यज्ञ में माथे पर चंदन या रोली का तिलक लगाया जाता है।  
  • कामना: तिलक से मस्तिष्क सुसंस्कृत बने, विचारों में श्रेष्ठता आए, और मानसिक स्वास्थ्य उत्तम रहे।  
  1. अग्नि पूजन  

ऋग्वेद में अग्नि को आराध्य देव माना गया है।  

  • गुण: अग्नि की गति ऊपर की ओर होती है, वह स्वयं प्रकाशित है, और जो कुछ भी प्राप्त करती है, उसे समान रूप से वितरित कर देती है।  
  • भावना: अग्नि से हमें निःस्वार्थता और सामूहिक कल्याण का संदेश मिलता है।  
  1. आसान  
  • यज्ञ के दौरान विशेष आसन पर बैठा जाता है।  
  • लाभ: यह शारीरिक स्थिरता और मानसिक एकाग्रता को बढ़ाता है।  
  1. आहुति
  • यज्ञ में आहुति देने के लिए उंगलियों का विशेष प्रयोग किया जाता है।  
  • लाभ: यह शरीर के एक्यूप्रेशर बिंदुओं को सक्रिय करता है।  
  1. ध्वनि  
  • सनातन धर्म मेंध्वनि का विशेष महत्व है।  
  • ॐ की ध्वनि: इसे पृथ्वी की प्रथम ध्वनि माना गया है, जो शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक संतुलन प्रदान करती है।  
  1. मंत्र  
  • यज्ञ मेंमंत्रोच्चारण का विशेष स्थान है।  
  • कार्य: मंत्र लोक और परलोक के बीच संपर्क स्थापित करते हैं।  
  • मंगल कामना: मंत्रोच्चारण के बाद मंगल कार्य संपन्न किए जाते हैं।  
  1. स्वाहा

आहुति के समयस्वाहा शब्द का उच्चारण किया जाता है।  

  • अर्थ: स्वाहा का अर्थ है सही विधि से अर्पण करना।  
  • पौराणिक कथा:  
  •    स्वाहा प्रजापति की पुत्री थीं और उनका विवाह अग्नि देव से हुआ था।  
  •    भगवान श्रीकृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया कि देवता केवल स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण कर सकेंगे।  
  •    अग्नि देव के माध्यम से स्वाहा देवताओं को अर्पित की गई सामग्री पहुंचाती हैं।  
  1. यज्ञ का उद्देश्य  
  •  मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और आत्मिक संतुलन प्राप्त करना।  
  •  प्रकृति और दैवीय शक्तियों का आह्वान करना।