यज्ञ: माहात्म्य

आवाहन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 अनंत श्री विभूषित अवधूत बाबा अरुण गिरी जी महाराज । एनवायरमेंट बाबा ।

चरक ऋषि ने कहा है:  

आरोग्य प्राप्त करने की इच्छा रखने वालों को विधिवत यज्ञ करना चाहिए।  

यज्ञ बुद्धि और मस्तिष्क की दुर्बलताओं को दूर करने में सहायक है।  

यज्ञ, प्राणायाम, ध्यान और वैदिक मंत्रों के उच्चारण के माध्यम से प्राण, उपप्राण, और जीवन ऊर्जा के गुणों का विकास होता है। वर्तमान समय में इन प्रक्रियाओं को लोग भूलते जा रहे हैं, जिससे वायु, शक्ति, तेजस और दिव्य लाभ कम होते जा रहे हैं।  

इस वैश्विक महायज्ञ के माध्यम से यज्ञयुग की स्थापना की जाएगी, जिससे मानवता को बल, शांति, और दिव्य आनंद प्राप्त होगा।  

अग्नि का आध्यात्मिक और उपासनात्मक उपयोग विशिष्ट है। यज्ञ, तपश्चर्या और योग साधना में अग्नि का सहयोग अनिवार्य है।  

शास्त्रों में अग्नि को जाग्नि कहा गया है, और उसकी प्रक्रिया अग्निहोत्र के रूप में प्रसिद्ध है। देवी शक्तियों के साथ सम्पर्क बनाने और अनुग्रह प्राप्त करने में अग्नि की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगरबत्ती, धूप और दीप के माध्यम से भी यह प्रक्रिया सरल रूप में अपनाई जाती है।  

इस महायज्ञ के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व में शांति, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होगा।

अध्यात्मिक जगत के रहस्यदृष्टा महर्षि अरविंद के अनुसार,  

भगवान वासुदेव कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में अग्निहोत्र यज्ञ को दैवीय विज्ञान बताया है। इसे देवताओं और मनुष्यों के बीच सांसारिक कामनाओं की प्रार्थना और पूर्ति का सटीक साधन कहा गया है। 

श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 3, श्लोक 10 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:  

देवताओं को यज्ञ से संतुष्ट करो, और वे तुम्हें सुख और समृद्धि प्रदान करेंगे। इस परस्पर सहयोग से सर्वोत्तम स्थिति प्राप्त होगी।

प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि के आरंभ में यज्ञ सहित प्रजाओं को उत्पन्न किया और उनसे कहा:  

यज्ञ के द्वारा वृद्धि प्राप्त करो। यह यज्ञ तुम्हें इच्छित भोग प्रदान करेगा।

यह महायज्ञ उसी वैदिक परंपरा का अनुपालन करते हुए, विश्व को दैवीय सत्ता के सहयोग से संचालित करने का एक प्रयास है।