विज्ञान और यज्ञ

आवाहन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 अनंत श्री विभूषित अवधूत बाबा अरुण गिरी जी महाराज । एनवायरमेंट बाबा ।

यज्ञ का वैज्ञानिक प्रभाव

यज्ञ वेदी खुले स्थान पर होने के कारण वायु का प्रवाह सुचारु रहता है, जिससे कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन धूलि के बनने की संभावना अत्यंत कम हो जाती है। घी की आहुति से उत्पन्न सुगंध का कारण कैप्रोनिक एल्डिहाइड, नार्मल ऑक्टीलिक एल्डिहाइड, वैलेरिक एल्डिहाइड, और अन्य उड़नशील एल्डिहाइड तथा वाष्पशील वसीय अम्ल होते हैं। ये वायुमंडल में मिलकर वातावरण को सुगंधित और पवित्र बनाते हैं।  

घी के अति सूक्ष्म कण, जो बिना जले वायुमंडल में पहुंचते हैं, अग्निहोत्र से उत्पन्न गैसों को आत्मसात करके वायु को लंबे समय तक पवित्र बनाए रखते हैं। यज्ञ कुण्ड के तापमान (4505500 डिग्री सेल्सियस) पर घी से उत्पन्न हाइड्रोकार्बन ऑक्सीजन के साथ मिलकर अन्य उपयोगी तत्वों का निर्माण करते हैं।  

वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, मेथेन का ऑक्सीकरण मेथिल एल्कोहल और फार्मेल्डिहाइड जैसे तत्व बनाता है। ये तत्व वायुमंडल में मिलकर कृमियों का नाश करते हैं और वायु को शुद्ध और सुगंधित बनाते हैं। फार्मेल्डिहाइड से घरों के रोगाणु भी नष्ट होते हैं। इसी कारण वायु शुद्धि के लिए फार्मेल्डिहाइड लैम्प का उपयोग किया जाता है।  

यज्ञ के माध्यम से रोगों का नाश और शारीरिक शक्ति का संवर्धन संभव है। वर्तमान समय में नईनई व्याधियों के बीच, यज्ञ के महत्व को समझकर उसका पालन करने से न केवल व्याधियां समाप्त होंगी, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण होगा।