अग्निहोत्र

आवाहन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 अनंत श्री विभूषित अवधूत बाबा अरुण गिरी जी महाराज । एनवायरमेंट बाबा ।

अग्निहोत्र यज्ञ और सृष्टि विज्ञान का सम्बन्ध:  

उन्नति और आध्यात्मिक शांति प्रदान करने वाले अग्निहोत्र यज्ञ का सीधा संबंध सृष्टि विज्ञान से है। प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि के प्रारंभ में यज्ञ सहित मानव जाति की रचना की। जो मनुष्य सांसारिक भोग की इच्छा रखते हैं, उन्हें परोपकार रूपी इस ग्लोबल महायज्ञ में आहुति अवश्य देनी चाहिए। अग्निहोत्र यज्ञ मानव समाज की समृद्धि का माध्यम है।  

अग्निहोत्र यज्ञ का प्रभाव:  

श्रद्धा से किया गया यज्ञ, जिसमें आहूत हविष्य (हवन सामग्री) अग्निदेव को समर्पित होता है, वह ब्रह्माण्ड की समस्त देवशक्तियों तक पहुंचता है। देवता इसे ग्रहण कर यजमान को तृप्त करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

स्वाहा मंत्र का महत्व:  

अग्निहोत्र में स्वाहा के साथ दी गई आहुति को ही अग्निदेव स्वीकार करते हैं। जब तक वे श्रद्धापूर्वक अर्पित आहुतियों को स्वीकार नहीं करते, तब तक यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाता।  

अग्निहोत्र का विज्ञान

अग्निहोत्र का विज्ञान:  

अग्निहोत्र में डाले जाने वाले द्रव्यों का 75% भाग लकड़ी होता है। लकड़ी में 45.62% कार्बन, 28.57% हाइड्रोजन और 23.81% ऑक्सीजन होती है। अग्निहोत्र के दौरान लकड़ी के जलने पर लगभग 5000 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्पन्न होता है। लकड़ी का मुख्य भाग सेलुलोज और लिग्नोसेलुलोज ऑक्सीकृत होकर कार्बन डाइऑक्साइड और जल में परिवर्तित हो जाता है। जल भाप बनकर उड़ जाता है और कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में समाहित हो जाती है।