ऋग्वेद में वृक्ष की महिमा और जीवन में उसका स्थान

प्रिय भक्तों, यह सारा संसार वृक्षों के बिना अधूरा है। वृक्ष हमारे जीवन का आधार हैं, हमारी धरती का सौंदर्य हैं, और हमारे प्राचीन ग्रंथों में इन्हें प्रकृति के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक माना गया है। ऋग्वेद हमें सिखाता है कि वृक्षों में केवल हरियाली ही नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड का रहस्य छिपा है। ये हमारे जीवन का आधार हैं और ईश्वर का ही रूप हैं। आज हम इस वृक्ष की महिमा को समझते हैं और यह जानने का प्रयास करते हैं कि हमारे जीवन में इसका क्या स्थान है।

वृक्षों का प्रकाश स्रोत के रूप में स्थान

सूर्य की ओर देखें, हमारे जीवन की ऊर्जा का स्रोत। परंतु यह ऊर्जा हमें केवल तभी मिल सकती है, जब इस धरती पर वृक्ष हों। सूर्य का प्रकाश वृक्षों की पत्तियों में समाता है, और वृक्ष अपनी जीवनदायिनी शक्ति से हमें ऑक्सीजन देते हैं। वृक्ष हमें याद दिलाते हैं कि यह पृथ्वी और उसका प्रकाश, हमारे जीवन का पोषण करते हैं। ऋग्वेद में कहा गया है, त्वं वृक्षस्य रोहणमसि विष्णोः प्रतिष्ठा – हे वृक्ष, तुम विष्णु की प्रतिष्ठा हो, तुम्हारी जड़ें देवताओं का निवास हैं। यह मंत्र वृक्षों को विष्णु का निवास मानता है, जो अपने पवित्र स्वरूप में हमें हर क्षण संजीवनी प्रदान कर रहे हैं।

वृक्षों का प्राणवायु के रूप में स्थान

हमारी प्रत्येक श्वास वृक्षों से जुड़ी हुई है। वायु जो हम भीतर लेते हैं, यह वृक्षों की कृपा है। वे हमें जीवन का अमूल्य प्राणवायु देते हैं, जिसे हम श्वास-प्रश्वास में ग्रहण करते हैं। इस प्रकार वृक्ष न केवल हमारे जीवन का अंग हैं, बल्कि हमारे प्रत्येक श्वास के माध्यम से हमारी आत्मा से जुड़े हुए हैं। ऋग्वेद में कहा गया है, वायवायाहि दर्शतेमे सोमा अरंकृतः – हे वायु, तुम प्रकट हो, यह सोम रस तैयार किया गया है। इस मंत्र में वायु का सत्कार करते हुए उसकी महिमा का बखान किया गया है। वृक्ष ही वह स्रोत हैं, जो इस वायु को शुद्ध और पवित्र बनाते हैं।

वृक्षों का जल स्रोत के रूप में स्थान

जल, जिसे हम अमृत मानते हैं, वह भी वृक्षों के बिना संभव नहीं है। वृक्ष जल को संचित करते हैं, नदियों के प्रवाह को संतुलित रखते हैं, और धरती की नमी को संजोकर रखते हैं। वृक्षों के कारण ही वर्षा होती है और जल का संरक्षण संभव हो पाता है। ऋग्वेद में जल को पवित्र कहा गया है और जीवन का मूल स्रोत माना गया है। आपो हि ष्ठा मयो भुवस्ताना ऊर्जे दधातन – हे जल, आप आनंद और सुख के स्रोत हैं। हमें ऊर्जा प्रदान करें। यह मंत्र हमें याद दिलाता है कि जल, जो हमें आनंद और तृप्ति देता है, वह वृक्षों के बिना असंभव है। वृक्षों का यह योगदान हमें सिखाता है कि कैसे हमें प्रकृति के इस चक्र को बनाए रखना चाहिए।

वृक्ष और आत्मा का संबंध

प्रकृति और वृक्ष हमारे भीतर बसे आत्मा का विस्तार हैं। वृक्षों की जड़ों की भांति ही हमारी आत्मा भी जीवन की गहराईयों से जुड़ी है। जैसे एक वृक्ष अपनी शाखाओं को चारों ओर फैलाता है और पृथ्वी से पोषण पाता है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में दया, प्रेम, और सद्भाव को फैलाना चाहिए। वृक्ष हमें जीवन में धैर्य और स्थिरता का प्रतीक बनाते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमें किसी भी परिस्थिति में धरती से जुड़ा रहना चाहिए।

वृक्षों का पूजन और संरक्षण का महत्व

हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें यह सिखाया है कि वृक्ष केवल प्रकृति के अंग नहीं हैं; वे हमारे देवता हैं, हमारे जीवन का आधार हैं। उनका पूजन और संरक्षण करना हमारा परम कर्तव्य है। वृक्षों के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। ऋग्वेद हमें यही संदेश देता है – वृक्षों की पूजा करो, उनके प्रति आभार व्यक्त करो, और उन्हें सहेज कर रखो।

प्रिय भक्तों, आइए, आज हम यह संकल्प लें कि हम वृक्षों का आदर करेंगे, उन्हें हानि नहीं पहुँचाएँगे, और अपने जीवन को भी वृक्षों की तरह सबको छाया और पोषण देने वाला बनाएँगे। यही हमारा धर्म है, यही हमारा कर्तव्य है, और यही सच्ची ईश्वर भक्ति है। वृक्षों की महिमा को नमन।

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