प्रिय भक्तों, इस अनमोल सृष्टि को देखकर मन में एक अद्भुत आभार का भाव उत्पन्न होता है। यह समस्त प्रकृति, जिसमें विविधता से भरे जीव-जन्तु और वनस्पतियाँ निवास करती हैं, हमारे जीवन का आधार हैं। ऋग्वेद हमें यह शिक्षा देता है कि यह सृष्टि केवल हमारे लिए नहीं है—यह हर एक जीव के लिए है, हर एक वनस्पति, हर एक कण के लिए है। सृष्टि का हर तत्व, चाहे वह पृथ्वी हो, जल हो, वायु हो, अग्नि हो या आकाश, हमारे जीवन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ऋग्वेद के इस पवित्र मंत्र, प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव का अर्थ है, हे प्रजापति, तुम्हारे बिना यह समस्त सृष्टि उत्पन्न नहीं होती। यहाँ प्रजापति का अर्थ है—सृष्टि के रचयिता, जिन्होंने इस भिन्नता और विविधता को रचा है। इस विविधता में ही ईश्वर की असीम शक्ति छुपी हुई है। हर वनस्पति, हर जीव, एक दूसरे से भिन्न होते हुए भी एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं, और यही इस सृष्टि की सुन्दरता है।
प्रकृति में विविधता का महत्व
देखो, जैसे एक वृक्ष पर कई पत्ते होते हैं, प्रत्येक पत्ता अलग-अलग आकार का, अलग-अलग रंग का, परन्तु सभी उस वृक्ष का ही अंग होते हैं। वैसे ही, इस सृष्टि में विविधता के बीच एकता है। विभिन्न प्रकार के वृक्ष, पुष्प, और जीव हमें सिखाते हैं कि इस संसार में हर एक का अपना योगदान है। कोई वृक्ष फल देता है, कोई औषधि देता है, तो कोई अपने घने छायादार पत्तों से हमें शरण देता है। इस विविधता के बिना जीवन का संतुलन सम्भव नहीं।
यह विविधता हमें प्रेम का, सह-अस्तित्व का, और सहयोग का संदेश देती है। यदि हम प्रकृति की इस सुंदरता का आदर नहीं करेंगे, यदि हम इस विविधता का सम्मान नहीं करेंगे, तो हम अपने जीवन का संतुलन खो देंगे।
प्रकृति का संतुलन—हमारा कर्तव्य
प्यारे भक्तों, हम सभी इस सृष्टि के अंग हैं, और हमें इस प्रकृति का आदर करना चाहिए। यदि हम एक वृक्ष काटते हैं, तो मानो हम अपने ही हाथ काटते हैं; यदि हम एक जीव को नष्ट करते हैं, तो हम अपने ही जीवन से एक महत्त्वपूर्ण अंश खोते हैं। इस प्रकृति का संतुलन बनाए रखना हमारा परम धर्म है।
ऋषियों ने इस मंत्र में जो संदेश दिया है, वह हमें सिखाता है कि सृष्टि के रचयिता ने इस विविधता को इसलिए रचा है, ताकि हम इसमें आनंद पा सकें, इसे संजोएं, और इसका संरक्षण करें। जैसे कोई कलाकार अपनी कला में विविधता लाता है, वैसे ही हमारे ईश्वर ने इस सृष्टि को अनेक रंगों, रूपों और गुणों से सजाया है।
विविधता का सम्मान करना—परम धर्म
हमारे शास्त्र कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष अपनी विविध शाखाओं के माध्यम से हर दिशा में फैलता है, उसी प्रकार हमें भी अपने जीवन में प्रेम, दया, और करुणा को हर जीव के प्रति फैलाना चाहिए। प्रत्येक जीव में, प्रत्येक वनस्पति में, और प्रत्येक तत्व में ईश्वर का वास है।
तो आओ, यह संकल्प लें कि हम इस सृष्टि का आदर करेंगे, इस विविधता का सम्मान करेंगे, और इसे सुरक्षित रखने के लिए अपने प्रयास करेंगे। यही हमारे जीवन का उद्देश्य है, यही हमारे धर्म का मूल आधार है।
प्रकृति के इन विविध रूपों को नमन, सृष्टि के इस अद्भुत संतुलन को प्रणाम। यही हमारा सच्चा धर्म है, यही हमारी सच्ची पूजा है।